सत्यमेव जयते
सत्यमेव जयते (= सत्यं एव जयते) भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य है. इसका अर्थ है : सत्य ही जीतता है / सत्य की ही जीत होती है। यह भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे देवनागरी लिपि में अंकित है। यह प्रतीक उत्तर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में वाराणसी के निकट सारनाथ में 250 ई.पू. में सम्राट अशोक द्वारा बनवाये गए सिंह स्तम्भ के शिखर से लिया गया है, लेकिन उसमें यह आदर्श वाक्य नहीं है। 'सत्यमेव जयते' मूलतः मुण्डक-उपनिषद का सर्वज्ञात मंत्र 3.1.6 है। पूर्ण मंत्र इस प्रकार है:
सत्यमेव जयते नानृतम सत्येन पंथा विततो देवयानः। येनाक्रमंत्यृषयो ह्याप्तकामो यत्र तत् सत्यस्य परमम् निधानम् ।।
'सत्यमेव जयते' को राष्ट्रपटल पर लाने और उसका प्रचार करने में मदन मोहन मालवीय (विशेषतः कांग्रेस के सभापति के रूप में उनके द्वितीय कार्यकाल (१९१८) में) की महत्वपूर्ण भूमिका रही।चेक गणराज्य और इसके पूर्ववर्ती चेकोस्लोवाकिया का आदर्श वाक्य "प्रावदा वितेजी" ("सत्य जीतता है") का भी समान अर्थ है।
सत्यमेव जयति न अनृतम् : सन्दर्भ
सत्य शब्द यहाँ परमात्मा के लिए आया है. वह सब पर विजयी है उसकी सदा जय है। यह सत्य शब्द सांसारिक अथवा भासित सत्य के लिए प्रयुक्त नहीं हुआ है।वेदान्त एवम दर्शन ग्रंथों में जगह जगह सत् असत् का प्रयोग हुआ है। सत् शब्द उसके लिए आया है जो सृष्टि का मूल तत्त्व है, सदा है, जो परिवर्तित नहीं होता, जो निश्चित है. इस सत् तत्त्व को ब्रह्म अथवा परमात्मा कहा गया है। असत शब्द का प्रयोग माया के लिए हुआ है. असत् उसे कहा है जो कल नहीं था, आज है, कल नहीं रहेगा अर्थात जो विनाशशील है, परिवर्तन शील है. यहाँ असत् का अर्थ झूठ नहीं है। नीति ग्रंथो में सत् असत् सांसारिक सच झूठ के लिए प्रयुक्त हुआ है!
सत्य (परमात्मा) की सदा जय हो, वही सदा विजयी होता है। अनृत - असत् (माया) तात्कालिक है उसकी उपस्थिति भ्रम है। वह भासित सत्य है वास्तव में वह असत है अतः वह विजयी नहीं हो सकता. ईश्वरीय मार्ग सदा सत् से परिपूर्ण है। जिस मार्ग से पूर्ण काम ऋषि लोग गमन करते हैं वह सत्यस्वरूप परमात्मा का धाम है।